Saturday, December 2, 2023

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नाथुराम गोडसे ने महात्मा गांधी के साथ ऐसा क्यों किया? Nathuram Godse || Mahatma Gandhi History 2 Oct

नाथुराम गोडसे ने महात्मा गांधी के साथ ऐसा क्यों किया? Nathuram Godse || Mahatma Gandhi History 2 Oct

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नाथुराम गोडसे ने महात्मा गांधी के साथ ऐसा क्यों किया? Nathuram Godse || Mahatma Gandhi History 2 Oct

आखिर क्यों की थी नाथूराम गोडसे ने गाँधी जी की हत्या, क्यों नाथूराम की नजरों में महात्मा गाँधी के सिर्फ एक तानाशाह आइए जानते हैं महात्मा गाँधी की मौत से जुड़ा वो काला सच जिसे कोई नहीं जानता महात्मा गाँधी, जिन्हें आज पूरी दुनिया उनके अच्छे कामों की वजह से जानती हैं भारत के इतिहास के एक ऐसे लीडर जिन्होंने बिना किसी हिंसा के सिर्फ अपनी अहिंसावादी सोच के बल पर अंग्रेजों को भारत से भगा दिया था
और सौ करोड़ भारतीयों को आजादी दिलाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी उनकी एक सरफिरे देश भक्त नाथूराम गोडसे ने हत्या क्यों कर दी इस सवाल को लेकर आज भी हमारा देश महात्मा गाँधी और नाथूराम गोडसे के बीच बंटा हुआ है जहाँ कुछ लोग नाथूराम गोडसे को हत्यारा मानते हैं तो वहीं कुछ लोग ये भी मानते हैं कि महात्मा गाँधी एक तानाशाह थे और नाथूराम ने उन्हें मार कर अच्छा किया था लेकिन क्या सच में नाथूराम ने महात्मा गाँधी को मारकर अच्छा किया था और आखिर क्यों नाथूराम को अपने इस अपराध पर ज़रा सा भी पछतावा नहीं था आज के इस वीडियो में हम गाँधी जी की हत्या से जुड़े इन्हीं सवालों की गुत्थी को सुलझाने की कोशीश करेंगे
तो पूरा वीडियो जरूर देखेगा दोस्तों साल उन्नीस सौ सैंतालीस में जब भारत को आजादी मिली लेकिन कुछ देश वासियों के दिमाग में अंग्रेजों द्वारा घोला गया जहर अभी भी मौजूद था धर्म वाले हमारे देश भारत में कई बार धर्म को लेकर बहस छिड़ जाती थी हालांकि आजादी के साथ पाकिस्तान का तो बंटवारा हो चुका था, लेकिन धर्म, कश्मीर और अनेक मुद्दों को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच कई मतभेद होते रहते थे इस बीच महाराष्ट्र के हिंदू राष्ट्रवादी नाथूराम गोडसे के दिल में हमारे महात्मा गाँधी के लिए नफरत बढ़ती जा रही थी और उसने महात्मा गाँधी को मारने का निर्णय लिया तीस जनवरी उन्नीस सौ अड़तालीस के दिन शाम के करीब पांच बजे
जब महात्मा गाँधी संध्या पूजन के बाद बाहर आ रहे थे तभी भीड़ से होते हुए नाथूराम गोडसे गाँधी जी के पास पहुंचा और उसने नमन करते हुए गाँधी जी का रास्ता रोक लिया तभी गाँधी जी की नातिन मन्नू ने उसे साइड हटने को कहा लेकिन गुस्से की आग में उबल रहे गोडसे ने गाँधी जी को धक्का दे दिया यहाँ गाँधी जी के अनुयायी कुछ कर पाते उससे पहले ही नाथूराम गोडसे ने अपनी पिस्तौल को निकाला और तीन गोलियां मारकर गाँधी जी के सीने को छलनी कर दिया जिससे लहूलुहान हुए उन्यासी साल के बुजुर्ग गाँधीजी जमीन पर गिर गए और तड़पने लगे लेकिन गाँधीजी को गोली मारने के बावजूद नाथूराम गोडसे वहाँ से नहीं भागा
बल्कि चेहरे पर हल्की मुस्कान के साथ वो वही खड़ा रहा हालांकि नाथूराम गोडसे की हरकत देखकर गांधीजी के समर्थक पूरी तरह से भड़क चूके थे और उन्होंने नाथूराम को पकड़कर पीटना शुरू कर दिया एक तरफ लहूलुहान पड़े गाँधी जी अपनी मौत से लड़ रहे थे दूसरी तरफ उनके समर्थक उन्हीं के सिखाए अहिंसा के पाठ को भूलकर हिंसा के रास्ते पर चलते हुए नाथूराम को पिट रहे थे इस बीच पुलिस वहाँ पहुंची और उन्होंने जैसे तैसे करके नाथूराम को भीड़ की पकड़ से छुड़ाकर गिरफ्तार कर लिया गाँधीजी की हत्या को लेकर कुछ लोगों का कहना है कि वो मौके पर ही उनकी जान चली गई थी जबकि कुछ लोग बताते हैं कि गोली लगने के बाद उन्हें जल्द से जल्द
उनके घर में उनके बेडरूम ले जाया गया जहाँ उनके परिवार वाले उनके लिए हिंदू धर्म ग्रंथों के श्लोक पढ़ने लगे और गोलियां लगने के करीब तीस मिनट बाद गाँधी जी ने इस दुनिया को अलविदा कहा जिसके बाद यह खबर पूरी दुनिया में फैल गई कि नाथूराम गोडसे ने गाँधी जी की हत्या कर दी है लेकिन आप में से ज्यादातर लोग ये नहीं जानते होंगे कि गोडसे का गाँधी जी को मारने का यह पहला प्रयास नहीं था बल्कि वो उन्नीस सौ चवालीस से गाँधी जी के पीछे पड़ा हुआ दरअसल, मई उन्नीस सौ चवालीस में गाँधी जी जब पंचगनी में प्रार्थना कर रहे थे तभी गोडसे अपने पंद्रह से बीस साथियों के साथ गाँधी जी को मारने पहुँच गया और उसने एक छुरी की मदद से गाँधी जी को मारने की कोशीश भी की लेकिन
भीड़ ने उसे गाँधी जी के पास पहुंचने ही नहीं दिया और उसे पकड़ लिया गया है हालांकि गांधीजी ने उस पर कोई क्रिमिनल चार्ज फाइल नहीं किये क्योंकि गांधीजी केस ना करके सुधारने का मौका देने में यकीन रखते थे जिससे वो आजाद हो गया था फिर सितंबर उन्नीस सौ चवालीस में जब गाँधीजी सेवाग्राम से मुंबई जा रहे थे तब उनका रास्ता रोककर उन्हें मारने की कोशीश की और उसे अरेस्ट कर लिया गया था लेकिन इस बार भी गाँधी जी ने उस पर कोई मुकदमा दर्ज नहीं किया और वो फिर से रिहा हो गया इतना ही नहीं गाँधीजी की हत्या करने के दस दिन पहले यानी बीस जनवरी उन्नीस सौ सैंतालीस को भी गोडसे ने गाँधी जी को मारने का प्रयास किया दरअसल उस दिन जब गाँधीजी एक सभा को संबोधित कर रहे थे तब नाथूराम और उसके साथियों ने अचानक
सभा में ग्रेनेड फेंका जिससे चारों तरफ भगदड़ मच गयी यानी नाथूराम और उसके साथियों ने ये प्लैन बनाया था कि जब भीड़ गाँधी जी से दूर जाएगी तब दूसरा ग्रेनेड महात्मा गाँधी पर ही फेक देंगे जिससे उनकी मौत हो जाएगी जब गाँधीजी अकेले स्पीकर प्लैटफॉर्म पर खड़े थे तो नाथूराम के दोस्त दिगम्बर बाढ़ के सटेज पर फेंकना था लेकिन डर के मारे वो ग्रेनेड फेंके बिना ही भीड़ के साथ भाग गए जिसकी वजह से नाथूराम गोडसे और उनके सभी साथी को भी वहाँ से भागना पड़ा लेकिन यहाँ उनका एक साथी मदनलाल पाहवा पुलिस की गिरफ्त में आ गया था जिसके बाद नाथूराम गोडसे ने ये प्रण लिया कि अब किसी पर भी निर्भर रहे बिना यानी खुद गाँधी जी को मार दूंगा

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